Tenali raman story in hindi विजय नगर राज्य के वित्तीय नियमों के अनुसार व्यक्ति की व्यक्तिगत आय पर भी तन्यकर लगता था । जो जैसा ‘कर’ देता था, राज्य की ओर से उसे वैसी ही विशेष सुविधाएं दी जाती थीं । राजकीय प्रशस्ति में उसके नाम का उल्लेख होता था ।
तेनालीराम की आय की कोई सीमा ही नहीं थी क्योंकि अपनी प्रखर बुद्धि के कारण वह पुरस्कारों आदि से बहुत सा धन कमा लेता था । इसी कारण राजकीय प्रशस्ति में उसके नाम का जिक्र सबसे ऊपर होता था । प्रधानमंत्री, सेनापति या अन्य मंत्रियों के नामों का उल्लेख उसके बाद ही होता था ।
उसे सुविधाएं आदि भी इन सबसे अधिक मिलती थीं । यही कारण था कि बाकी सब लोग दिल ही दिल में उससे कुढ़ते थे । दरबार की कार्यवाही छ: दिन चलती थी । सातवें दिन महाराज बगीचों में बैठकर केवल दरबारियों की समस्याएं सुना करते थे ।
उस दिन भी वह खुले दरबार में बैठे दरबारियों की समस्याएं सुनकर उन पर अपने निर्णय दे रहे थे । आज तेनालीराम अनुपस्थित था । तभी एक मंत्री ने राज्य के आयकरदाताओं की प्रशस्ति सूची महाराज के सामने रखकर कहा: ”महाराज! इस सूची से स्पष्ट है कि तेनालीराम राज्य में सबसे अधिक आयकर देते हैं जबकि उनका वेतन हमसे कम है ।
सोचने की बात है महाराज कि इतना धन उनके पास आता कहां से है ।” ”यह तो मंत्रीजी ने बड़ी अच्छी बात उठाई है अन्नदाता ।” एक अन्य मंत्री बोला: ”दरबार के नियमों के अनुसार-दरबार से जुड़ा कोई भी सदस्य, जो दरबार से वेतन पाता है, वह अन्य किसी तरीके से आय नहीं कर सकता-फिर तेनालीराम की इस ऊपरी आय का स्रोत क्या है ?”
राजपुरोहित भी भला ऐसे मौके पर कहां पीछे रहने वाला था, बोला : ”महाराज! दरबारी नियमों का पालन न करके अतिरिक्त धन कमाने के अपराध में उसे दण्ड मिलना ही चाहिए ।” बाकी बचे दरबारियों ने भी उनकी हां में हां मिलाई ।
महाराज के चेहरे पर गम्भीरता के भाव दिखाई देने लगे । मंत्री, सेनापति और पुरोहित ठीक कहते हैं, मगर इसके साथ ही महाराज ये भी जानते थे कि तेनालीराम की आय के साधन वे पुरस्कार हैं जो समय-समय पर उन्हें मिलते रहते हैं, किन्तु जिन कामों पर उसे पुरस्कार मिले हैं, वे काम भी तो उसके दरबारी कर्त्तव्यों में शामिल हैं और दरबारी कर्त्तव्यों का उसे निश्चित वेतन मिलता है ।
महाराज को मामला काफी उलझा हुआ लगा । सम्राट अपनी ओर से कोई तर्क इसलिए नहीं देना चाहते थे कि कहीं बाकी यबयैं ए न समझ लें कि वे तेनालीराम का पक्ष ले रहे हैं । अत: बोले : ”तेनालीराम को आने दें, तभी कोई निर्णय लिया जाएगा । आखिर आरोपी को भी अपना पक्ष रखने का अधिकार है ।”
फिर एक सेवक को तेनालीराम के घर भेज दिया गया । कुछ ही देर बाद उन्होंने देखा कि कंधे पर एक बड़ा सा झोला लटकाए तेनालीराम सेवक के साथ चला आ रहा है । ”अन्नदाता की जय हो ।” ”तेनालीराम! आज तुम अभी तक कहां थे?”
”क्या बताऊं अन्नदाता!” रुआसी सी सूरत बनाकर तेनालीराम बोला: ”मैं तो बड़ी दुविधा में फंस गया हूं ।” कहकर उसने झोले में हाथ डाला और एक मोटा-ताजा मुर्गा बाहर निकाला । ”यह क्या-मुर्गा-इसे झोले में डाले कहां घूम रहे हो ?” ”महाराज! यही दुष्ट तो मेरी दुविधा का कारण है ।” दुखी स्वर में तेनालीराम ने
कहा : ”महाराज, आपकी दुआ से मेरे पास पन्द्रह मुर्गियां हैं और एक ये इकलौता मुर्गा है । कुल मिलाकर ये सोलह प्राणी हुए और एक छटांक प्रत्येक के हिसाब से मैं सोलह छटांक दाना रोजाना दड़बे में डालता हूं । मगर यह दुष्ट अकेला ही चार-पांच छटांक दाना गटक जाता है और मेरी मुर्गियां भूखी रह जाती हैं । महारत आप ही इसका फैसला करें और इस दुष्ट को सजा दें । ”
महाराज हंस पड़े : ”अरे भई तेनालीराम! इसमें भला इसका क्या दोष है । यह अधिक चुस्न-दुस्थ्य है इसलिए ये अपने हिस्से से चार-पांव गुना अधिक दाना खा जाता है, अपनी क्षमता के हिसाब से इम मिलना ही चाहिए । बल्कि दण्ड के अधिकारी तो तुम हो जो इसे इसकी शारीरिक क्षमता से कम देते हो ।”
महाराज की बात सुनकर सभी दरबारियों ने उनकी हां में हां मिलाई । तेनालीराम ने मुर्गे को वापस झोले में रख लिया । ”खैर! अब आप यह बताएं महाराज कि सेवक को कैसे याद किया?” महाराज ने उसे बैठने का संकेत किया, फिर आयकरदाताओं की सूची उसके सामने रखकर बोले: ”तेनालीराम! तुम प्रधानमंत्री, सेनापति और पुरोहित जी से कम वेतन पाते हो, मगर आयकर इन सबसे अधिक देते हो ।
हम जानना चाहते हैं कि तुम्हारी अतिरिक्त आय का स्रोत क्या है ?” तेनालीराम शान्त बैठा रहा । ”महाराज!” कुछ देर बाद शांत भाव से वह बोला: ”आप यूं समझें कि जैसे मेरे मुर्गे को होती है-समझ लें कि आपकी मुर्गियों में मैं अकेला मुर्गा हूं ।”
तेनालीराम की बात सुनकर न केवल महाराज बल्कि दरबारी गण भी हंस पड़े । मुर्गे की मिसाल देकर तेनालीराम ने सारी बात समाप्त कर दी थी । इसी के साथ सभा समाप्त हो गई । सभी के जाने के बाद महाराज ने तेनालीराम से पूछा : ”तुम्हें कैसे पता चला कि प्रधानमंत्री, सेनापति और पुरोहित ने तुम्हारे खिलाफ शिकायत की है जो तुम मुर्गा लिए चले आए ?” ”इस काम के लिए आपने अपने खास सेवक को जो भेजा था ।” महाराज मुस्कराकर रह गए ।