Tenali raman story in hindi ढलती हुई ठंड का सुहाना मौसम था । राजा कृष्णदेव राय वन-विहार के लिए नगर से बाहर डेरा डाले हुए थे । ऐसा हर वर्ष होता था । महाराज के साथ में कुछ दरबारी और सैनिक भी आए हुए थे ।
पूरे खेमे में खुशी का माहौल था । कभी गीत-संगीत की महफिल जमती तो कभी किस्से-कहानियों का दौर चल पड़ता । इसी प्रकार आमोद-प्रमोद में कई दिन गुजर गए । एक दिन राजा कृष्णदेव राय अपने दरबारियों से बोले : “वन-विहार को आए हैं तो शिकार जरूर करेंगे ।”
तुरंत शिकार की तैयारियां होने लगीं । कुछ देर बाद पूरा लाव-लश्कर शिकार के लिए निकल पड़ा । सभी अपने-अपने घोड़ों पर सवार थे । तेनालीराम भी जब उन सबके साथ चलने लगा तो एक मंत्री बोला : ”महाराज, तेनालीराम को साथ ले जाकर क्या करेंगे । यह तो अब बूढ़े हो गए हैं, इन्हें यहीं रहने दिया जाए ।
हमारे साथ चलेंगे तो बेचारे थक जाएंगे ।” मंत्री की बात सुनकर सारे दरबारी हंस पड़े लेकिन तेनालीराम चूंकि राजा के स्नेही थे, इसलिए उन्होंने तेनालीराम को भी अपने साथ ले लिया । थोड़ी देर का सफर तय करके सब लोग जंगल के बीचों-बीच पहुंच गए ।
तभी राजा कृष्णदेव राय को एक हष्ट-पुष्ट हिरन दिखाई दिया । राजा उसका पीछा करने लगे । सभी दरबारी भी उनके पीछे थे । पीछा करते-करते वे घने जंगल में पहुंच गए राजा घनी झाड़ियों के बीच बढ़ते जा रहे थे ।
एक जगह पर आकर उन्हें हिरन अपने बहुत ही पास दिखाई दिया तो उन्होंने निशाना साधा । घोड़ा अभी भी दौड़ता जा रहा था और महाराज कमान पर चढ़ा तीर छोड़ने ही वाले कि अचानक तेनालीराम जोर से चिल्लाया : ”रुक जाइए महाराज, इसके आगे जाना ठीक नहीं ।”
राजा कृष्णदेव राय ने फौरन घोड़ा रोका । इतने में हिरन उनकी पहुंच से बाहर निकल गया । तेनालीराम के कारण हिरन को हाथ से निकलते देख महाराज को बहुत गुस्सा आया । वह तेनालीराम पर बरस पड़े, ”तेनालीराम! तुम्हारी वजह से हाथ में आया शिकार निकल गया ।”
मगर अचानक ही उन्हें कुछ याद आया और मंत्री से मुखातिब होकर वे बोले: ”मंत्री जी, इस पेड़ पर चढ़कर हिरन को देखें तभी कुछ कहूंगा या बताऊंगा ।” मंत्रीजी पेड़ पर चढ़े तो उन्होंने एक विचित्र ही नजारा देखा । हिरन जंगली झाड़ियों के बीच फंसा जोर-जोर से चीख और उछल रहा था ।
उसका सारा शरीर लहूलुहान हो गया था । ऐसा लगता था जैसे जंगली झाड़ियों ने उसे अपने पास खींच लिया हो । वह भरपूर जोर लगाकर झाड़ियों के चंगुल से छूटने की कोशिश कर रहा था । आखिरकार बड़ी मुश्किल से वह अपने आपको उन झाड़ियों से छुड़ाकर भाग लिया ।
मंत्री ने पेड़ से उतरकर यह सारी बात राजा को बताई । राजा यह सब सुनकर हैरान रह गए और बोले: ”तेनालीराम, यह सब क्या है ?” ”महाराज, यहां से आगे खतरनाक नरभक्षी झाड़ियां हैं । जिनके कांटे शरीर में चुभकर प्राणियों का खून पीने लगते हैं ।
जो जीव इनकी पकड़ में आया-वह अधमरा होकर ही इनसे छूटा । पेड़ से मंत्रीजी ने स्वयं हिरन का हश्र देख लिया, इसलिए मैंने आपको रोका था ।” अब राजा कृष्णदेव राय ने गर्व से मंत्री और दरबारियों की ओर देखा और कहा, ”देखा, तुम लोगों ने, तेनालीराम को साथ लाना क्यों जरूरी था ?” मंत्री और सारे दरबारी अपना-सा मुंह लेकर रह गए और एक दूसरे की ओर ताकने लगे ।